राशि चक्र की दूसरी राशि वृष है.आपकी कुण्डली के लग्न भाव में
यह राशि है तो आपका लग्न वृष कहलता है.आपके लग्न के साथ प्रथम भाव में जो
भी ग्रह बैठता है वह आपके लग्न को प्रभावित करता है.आपके जीवन में जो कुछ
भी हो रहा है वह कहीं लग्न में बैठे हुए ग्रहों का प्रभाव तो नहीं है।
वृषभ लग्न में लग्नस्थ सूर्य (Sun in Taurus Ascendant)
इस लग्न में सूर्य कारक ग्रह एवं चतुर्थेश होता है (Sun is the Karaka and the lord of the fourth house when in Taurus).लग्न भाव में सूर्य अपने शत्रु शुक्र की राशि में स्थित होकर शुभ फल में कमी करता है.माता पिता से इन्हें सामान्य सुख मिलता है.सरकारी क्षेत्र भी इनके लिए सामान्य रहता है.सप्तम भाव पर सूर्य की दृष्टि होने से जीवनसाथी से मतभेद, दाम्पत्य जीवन में तनाव व कष्ट होता है.यह द्विपत्नी योग भी बनाता है.रोजगार में अस्थिरता एवं साझेदारों से परेशानियों का सामना करना होता है.इस लग्न में प्रथम भाव में सूर्य होने से कम उम्र में ही बाल गिरने लगते हैं.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ चन्द्र (Moon in Taurus Lagna)
चन्द्रमा इस लग्न में अकारक होता है लेकिन सम ग्रह की राशि में होने से यह सामान्य रूप से उत्तम फल देने वाला होता है (Due to placement in a neutral sign, Moon gives benefic result in Taurus Ascendant).लग्नस्थ चन्द्र के प्रभाव से मनोबल एवं आत्मबल बना रहता है.भाई बंधुओं से सहयोग एवं सुख प्राप्त होता है.वाणी में मिठास एवं मधुरता रहती है.चन्द्रमा अपनी पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है.चन्द्रमा की दृष्टि जीवनसाथी के संदर्भ में उत्तम परिणामदायक होता है.जीवनसाथी सुन्दर और आकर्षक होता है.वैवाहिक जीवन सामान्य रूप से सुखमय होता है.आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ मंगल (Mars in Taurus Ascendant)
वृषभ लग्न की कुण्डली में मंगल सप्तमेश एवं द्वादशेश होता है.यह इस लग्न में सम होता है.प्रथम भाव में उपस्थित मंगल आकर्षक और सुन्दर शरीर प्रदान करता है.इसके प्रभाव से व्यक्तित्व गौरवपूर्ण होता है.आत्मविश्वास भरपूर रहता है.इस लग्न में मंगल सप्तमेश और द्वादशेश होने से साझेदारों से एवं रोजगार में लाभ होता है.देश विदेश की यात्राओं का भी योग बनता रहता है.लग्न में स्थित मंगल की दृष्टि चतुर्थ भाव पर रहती है (When in ascendant, Mars aspects the fourth house) परिणामत: भूमि, भवन, वाहन एवं माता के सुख में कमी आती है.सप्तम भाव से दृष्टि सम्बन्ध होने के कारण विवाह में विलम्ब होता है.इन्हें संतान एवं पत्नी के कारण कष्ट होता है.चोट लगने एवं रक्त विकार की संभावना रहती है.इन्हें कर्ज की स्थिति का भी सामना करना होता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ बुध (Mercury in Taurus Ascendant)
बुध वृषभ लग्न की कुण्डली में कारक ग्रह होता है.यह इस लग्न में द्वितीयेश और पंचमेश होकर शुभ परिणामदायक होता है.प्रथम भाव में स्थित बुध बुद्धिमान एवं धनवान बनाता है.इन्हें कारोबार में अच्छी सफलता मिलती है.लग्नस्थ बुध विनोदी व्यक्तित्व प्रदान करता है.ऐसा व्यक्ति जीवन को आनन्द और उल्लास के साथ जीने की इच्छा रखता है.इन्हें सरकारी पक्ष से अनुकूलता प्राप्त होती है.जीवनसाथी के संदर्भ में भी यह बुध मंगलकारी होता है.लग्नस्थ बुध सुन्दर और बुद्धिमान जीवनसाथी प्रदान करता है.करोबार एवं रोजगार में लाभ दिलाता है.साझेदारी खूब फलती है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ गुरू (Jupiter in Taurus Ascendant)
गुरू वृषभ लग्न में अकारक होता है और अष्टम एवं एकादश भाव का स्वामी होता है.शत्रु ग्रह की राशि में स्थित गुरू मंदा फल देता है (Due to placement in the sign of an enemy planet, Jupiter gives malefic result).व्यक्ति को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना होता है.आजीविका के विषय में परेशानियों का सामना करना होता है.इन्हें मानसिक परेशानियों का भी सामना करना होता है.परिश्रम के अनुपात में लाभ नहीं मिल पाता है.लग्न मे बैठा गुरू पंचम, सप्तम एवं नवम भाव को देखता है.गुरू की दृष्टि के कारण व्यक्ति का भाग्य मंदा रहता है.गुरू इनके ज्ञान, संतान एवं धर्म को प्रभावित करता है.सप्तम भाव गुरू की दृष्टि में होने से वैवाहिक जीवन में जीवनसाथी से अनुकूल सम्बन्ध नहीं रहता.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ शुक्र (Venus in Taurus Ascendant)
शुक्र वृषभ लग्न की कुण्डली में लग्नेश व षष्ठेश होता है.शुक्र लग्नस्थ होकर व्यक्ति को सुन्दर और आकर्षक बनाता है.यह व्यक्ति को आत्मबल एवं आत्मविश्वास प्रदान करता है.षष्ठेश शुक्र रोग और व्याधियां देता है.शुक्र की दशा के समय स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव होता रहता है.प्रथम भाव में स्थित शुक्र सप्तम भाव को देखता है जिससे भौतिक सुख की प्राप्ति होती है.वैवाहिक जीवन प्रेमपूर्ण होता है.रोजगार में उत्तमता रहती है.साझेदारों एवं मित्रों से सहयोग मिलता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ शनि (Saturn in Taurus Ascendant)
वृषभ लग्न की कुण्डली में शनि नवम एवं दशम भाव का स्वामी होता है.यह राशि शनि के मित्र की राशि है.इस राशि में शनि कारक ग्रह होता है.लग्न में वृषभ राशि में बैठा शनि व्यक्ति को अत्यधिक परिश्रमी और कार्य कुशल बनता है.शारीरिक रूप से ताकतवर और पुष्ट बनता है.सरकारी पक्ष से एवं पिता से सहयोग एवं लाभ प्रदान करता है.प्रथम भाव में स्थित शनि की दृष्टि तृतीय, सप्तम एवं दशम भाव पर रहती है.इनका भाग्योदय जन्म स्थान से दूर जाकर होता है.ससुराल पक्ष से लाभ एवं सम्मान प्राप्त होता है.जीवनसाथी से सहयोग प्राप्त होता है.शनि की दृष्टि से विवाह में विलम्ब होता है एवं भाई बंधुओं से सहयोग नहीं मिल पाता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ राहु (Rahu in Taurus Ascendant)
राहु वृषभ लग्न की कुण्डली में प्रथम भाव में स्थित होने से राहु के गोचर काल में स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना होता है.राहु कार्यों में बाधा डालता है और अवरोध पैदा करता है.लगनस्थ राहु व्यक्ति को गुप्त विद्याओं में पारंगत बनाता है.इस भाव में स्थित राहु वैवाहिक जीवन को कलहपूर्ण बनाता है.जीवनसाथी से असहयोग प्राप्त होता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ केतु (Ketu in Taurus Ascendant)वृषभ लग्न की कुण्डली में लग्न भाव में स्थित केतु व्यक्ति को अल्पशिक्षित और लालची बनाता है साथ ही परिश्रमी और कर्मठ भी बनाता है.ये अपनी मेहनत और लगन से असंभव कार्य को भी संभव कर लेते हैं.परिश्रमी होने के बावजूद इनमें साहस की कमी रहती है.स्वतंत्र विचार से किसी काम को पूरा करना इनके लिए कठिन होता है.लॉटरी, जुआ एवं सट्टे में इनका धन बर्बाद होता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ सूर्य (Sun in Taurus Ascendant)
इस लग्न में सूर्य कारक ग्रह एवं चतुर्थेश होता है (Sun is the Karaka and the lord of the fourth house when in Taurus).लग्न भाव में सूर्य अपने शत्रु शुक्र की राशि में स्थित होकर शुभ फल में कमी करता है.माता पिता से इन्हें सामान्य सुख मिलता है.सरकारी क्षेत्र भी इनके लिए सामान्य रहता है.सप्तम भाव पर सूर्य की दृष्टि होने से जीवनसाथी से मतभेद, दाम्पत्य जीवन में तनाव व कष्ट होता है.यह द्विपत्नी योग भी बनाता है.रोजगार में अस्थिरता एवं साझेदारों से परेशानियों का सामना करना होता है.इस लग्न में प्रथम भाव में सूर्य होने से कम उम्र में ही बाल गिरने लगते हैं.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ चन्द्र (Moon in Taurus Lagna)
चन्द्रमा इस लग्न में अकारक होता है लेकिन सम ग्रह की राशि में होने से यह सामान्य रूप से उत्तम फल देने वाला होता है (Due to placement in a neutral sign, Moon gives benefic result in Taurus Ascendant).लग्नस्थ चन्द्र के प्रभाव से मनोबल एवं आत्मबल बना रहता है.भाई बंधुओं से सहयोग एवं सुख प्राप्त होता है.वाणी में मिठास एवं मधुरता रहती है.चन्द्रमा अपनी पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है.चन्द्रमा की दृष्टि जीवनसाथी के संदर्भ में उत्तम परिणामदायक होता है.जीवनसाथी सुन्दर और आकर्षक होता है.वैवाहिक जीवन सामान्य रूप से सुखमय होता है.आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ मंगल (Mars in Taurus Ascendant)
वृषभ लग्न की कुण्डली में मंगल सप्तमेश एवं द्वादशेश होता है.यह इस लग्न में सम होता है.प्रथम भाव में उपस्थित मंगल आकर्षक और सुन्दर शरीर प्रदान करता है.इसके प्रभाव से व्यक्तित्व गौरवपूर्ण होता है.आत्मविश्वास भरपूर रहता है.इस लग्न में मंगल सप्तमेश और द्वादशेश होने से साझेदारों से एवं रोजगार में लाभ होता है.देश विदेश की यात्राओं का भी योग बनता रहता है.लग्न में स्थित मंगल की दृष्टि चतुर्थ भाव पर रहती है (When in ascendant, Mars aspects the fourth house) परिणामत: भूमि, भवन, वाहन एवं माता के सुख में कमी आती है.सप्तम भाव से दृष्टि सम्बन्ध होने के कारण विवाह में विलम्ब होता है.इन्हें संतान एवं पत्नी के कारण कष्ट होता है.चोट लगने एवं रक्त विकार की संभावना रहती है.इन्हें कर्ज की स्थिति का भी सामना करना होता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ बुध (Mercury in Taurus Ascendant)
बुध वृषभ लग्न की कुण्डली में कारक ग्रह होता है.यह इस लग्न में द्वितीयेश और पंचमेश होकर शुभ परिणामदायक होता है.प्रथम भाव में स्थित बुध बुद्धिमान एवं धनवान बनाता है.इन्हें कारोबार में अच्छी सफलता मिलती है.लग्नस्थ बुध विनोदी व्यक्तित्व प्रदान करता है.ऐसा व्यक्ति जीवन को आनन्द और उल्लास के साथ जीने की इच्छा रखता है.इन्हें सरकारी पक्ष से अनुकूलता प्राप्त होती है.जीवनसाथी के संदर्भ में भी यह बुध मंगलकारी होता है.लग्नस्थ बुध सुन्दर और बुद्धिमान जीवनसाथी प्रदान करता है.करोबार एवं रोजगार में लाभ दिलाता है.साझेदारी खूब फलती है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ गुरू (Jupiter in Taurus Ascendant)
गुरू वृषभ लग्न में अकारक होता है और अष्टम एवं एकादश भाव का स्वामी होता है.शत्रु ग्रह की राशि में स्थित गुरू मंदा फल देता है (Due to placement in the sign of an enemy planet, Jupiter gives malefic result).व्यक्ति को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना होता है.आजीविका के विषय में परेशानियों का सामना करना होता है.इन्हें मानसिक परेशानियों का भी सामना करना होता है.परिश्रम के अनुपात में लाभ नहीं मिल पाता है.लग्न मे बैठा गुरू पंचम, सप्तम एवं नवम भाव को देखता है.गुरू की दृष्टि के कारण व्यक्ति का भाग्य मंदा रहता है.गुरू इनके ज्ञान, संतान एवं धर्म को प्रभावित करता है.सप्तम भाव गुरू की दृष्टि में होने से वैवाहिक जीवन में जीवनसाथी से अनुकूल सम्बन्ध नहीं रहता.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ शुक्र (Venus in Taurus Ascendant)
शुक्र वृषभ लग्न की कुण्डली में लग्नेश व षष्ठेश होता है.शुक्र लग्नस्थ होकर व्यक्ति को सुन्दर और आकर्षक बनाता है.यह व्यक्ति को आत्मबल एवं आत्मविश्वास प्रदान करता है.षष्ठेश शुक्र रोग और व्याधियां देता है.शुक्र की दशा के समय स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव होता रहता है.प्रथम भाव में स्थित शुक्र सप्तम भाव को देखता है जिससे भौतिक सुख की प्राप्ति होती है.वैवाहिक जीवन प्रेमपूर्ण होता है.रोजगार में उत्तमता रहती है.साझेदारों एवं मित्रों से सहयोग मिलता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ शनि (Saturn in Taurus Ascendant)
वृषभ लग्न की कुण्डली में शनि नवम एवं दशम भाव का स्वामी होता है.यह राशि शनि के मित्र की राशि है.इस राशि में शनि कारक ग्रह होता है.लग्न में वृषभ राशि में बैठा शनि व्यक्ति को अत्यधिक परिश्रमी और कार्य कुशल बनता है.शारीरिक रूप से ताकतवर और पुष्ट बनता है.सरकारी पक्ष से एवं पिता से सहयोग एवं लाभ प्रदान करता है.प्रथम भाव में स्थित शनि की दृष्टि तृतीय, सप्तम एवं दशम भाव पर रहती है.इनका भाग्योदय जन्म स्थान से दूर जाकर होता है.ससुराल पक्ष से लाभ एवं सम्मान प्राप्त होता है.जीवनसाथी से सहयोग प्राप्त होता है.शनि की दृष्टि से विवाह में विलम्ब होता है एवं भाई बंधुओं से सहयोग नहीं मिल पाता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ राहु (Rahu in Taurus Ascendant)
राहु वृषभ लग्न की कुण्डली में प्रथम भाव में स्थित होने से राहु के गोचर काल में स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना होता है.राहु कार्यों में बाधा डालता है और अवरोध पैदा करता है.लगनस्थ राहु व्यक्ति को गुप्त विद्याओं में पारंगत बनाता है.इस भाव में स्थित राहु वैवाहिक जीवन को कलहपूर्ण बनाता है.जीवनसाथी से असहयोग प्राप्त होता है.
वृषभ लग्न में लग्नस्थ केतु (Ketu in Taurus Ascendant)वृषभ लग्न की कुण्डली में लग्न भाव में स्थित केतु व्यक्ति को अल्पशिक्षित और लालची बनाता है साथ ही परिश्रमी और कर्मठ भी बनाता है.ये अपनी मेहनत और लगन से असंभव कार्य को भी संभव कर लेते हैं.परिश्रमी होने के बावजूद इनमें साहस की कमी रहती है.स्वतंत्र विचार से किसी काम को पूरा करना इनके लिए कठिन होता है.लॉटरी, जुआ एवं सट्टे में इनका धन बर्बाद होता है.